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अर्थात : कन्या अपने दूसरे वचन में वर मांगती है कि जिस प्रकार आप अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं, उसी प्रकार मेरे माता-पिता का भी सम्मान करें तथा कुटुम्ब की मर्यादा के अनुसार धर्मानुष्ठान करते हुए ईश्वर भक्त बने रहें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।अर्थात : तीसरे वचन में कन्या वर मांगती है कि आप मुझे यह वचन दें कि आप जीवन की तीनों अवस्थाओं में मेरा पालन करते रहेंगे, तो ही मैं आपके वामांग में आने को तैयार हूं।
हिन्दू धर्म में विवाह के दौरान सात फेरे लिए जाते हैं जिन्हें सप्तपदी कहते हैं। सप्तपदी के सात वचन होते हैं जिन्हें वर और वधु को निभाना होता है। कन्या यह वचन अपने होने वाले पति से मांगती है। यह सात वचन दाम्पत्य जीवन को खुशहाल और सफल बनाने हेतु होते हैं।
पहला वचन
तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी!
अर्थात : कन्या अपने पहले वचन में वर से कहती है कि यदि आप कभी तीर्थयात्रा को जाओ तो मुझे भी अपने संग लेकर जाना। कोई व्रत-उपवास अथवा अन्य धर्म कर्म का कोई कार्य करें तो आज की भांति ही मुझे अपने वाम भाग में अवश्य स्थान दें। यदि आप इसे स्वीकार करते हैं तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।
दूसरा वचन
पुज्यो यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो निजकर्म कुर्या:
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं द्वितीयम!!
जीवनम अवस्थात्रये पालनां कुर्यात
वामांगंयामितदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं तृतीयं!!
वामांगंयामितदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं तृतीयं!!
अर्थात : तीसरे वचन में कन्या वर मांगती है कि आप मुझे यह वचन दें कि आप जीवन की तीनों अवस्थाओं में मेरा पालन करते रहेंगे, तो ही मैं आपके वामांग में आने को तैयार हूं।
चौथा वचन
कुटुम्बसंपालनसर्वकार्य कर्तु प्रतिज्ञां यदि कातं कुर्या:
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं चतुर्थ:।।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं चतुर्थ:।।
अर्थात : कन्या अपने चौथे वचन में कहती है कि अब तक आप घर-परिवार की चिंता से पूर्णत: मुक्त थे। अब जब कि आप विवाह बंधन में बंधने जा रहे हैं तो भविष्य में परिवार की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति का दायित्व आपके कंधों पर है। यदि आप इस भार को वहन करने की प्रतिज्ञा करें तो ही मैं आपके वामांग में आ सकती हूं।
पांचवां वचन
स्वसद्यकार्ये व्यहारकर्मण्ये व्यये मामापि मन्त्रयेथा
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: पंचमत्र कन्या!!
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: पंचमत्र कन्या!!
अर्थात : पांचवें वचन में कन्या वर मांगती है कि जो वह कहती है, वह आज के परिप्रेक्ष्य में अत्यंत महत्व रखता है। वह कहती है कि अपने घर के कार्यों में, लेन-देन अथवा अन्य किसी हेतु खर्च करते समय यदि आप मेरी भी मंत्रणा लिया करें तो मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।
छठवां वचन
न मेपमानमं सविधे सखीना द्यूतं न वा दुर्व्यसनं भंजश्वेत
वामाम्गमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं च षष्ठम!!
वामाम्गमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं च षष्ठम!!
अर्थात : कन्या अपने छठे वचन में कहती है कि यदि मैं अपनी सखियों अथवा अन्य स्त्रियों के बीच बैठी हूं, तब आप वहां सबके सम्मुख किसी भी कारण से मेरा अपमान नहीं करेंगे। यदि आप जुआ अथवा अन्य किसी भी प्रकार के दुर्व्यसन से अपने आपको दूर रखें तो ही मैं आपके वामांग में आना स्वीकार करती हूं।
सातवां वचन
परस्त्रियं मातूसमां समीक्ष्य स्नेहं सदा चेन्मयि कान्त कूर्या।
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: सप्तमंत्र कन्या!!
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: सप्तमंत्र कन्या!!
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